शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

स्वाभिमान



स्वाभिमान सम्मान नहीं तो !
जीवन का मतलब ही क्या है।
जीवन ही यदि नहीं स्वतंत्रत तो !
उसका गौरव गान कहां है !
रोज-रोज का सहते सहते।
मानव का मनमाना व्यवहार।
करता है अपमान रोज ही।
जाति धर्म और राष्ट्र के नाम।
दलदल में जो फंसा हुआ है।
वह कैसे हो सकता महान।
लगने लगा आजकल हमको।
क्या वास्तव में है वह हैवान।
मानव मानव में करता है।
अंतर और निरंतर द्वेष।
अहंकार में भरा हुआ है।
अपराधों से तरा हुआ है।
रग रग उसका लगता है।
जैसे है वह दानव या हैवान।
मेरा देश महान मेरा देश महान

- डॉ. लाल रत्नाकर

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