मंगलवार, 24 मार्च 2020

ए धनपशुओं


ये पूंजीपतियों !
मुझे दौलत दो
जिससे हम संसद में बैठे
इतने सांसदों को खरीद कर
एक सरकार बनाने का
सपना साकार कर सकूं।
जिसे संविधान पर
चलाया जा सके।

इन्होंने/जिन्होंने
संसद को भीड़ का बाजार
बना डाला है।
इन्हें फ्रीजर में डाल दिया है।
जिससे इनकी सड़ांध जाहिर न हों।
जो बोलें न सोचें न अवाम की चाह।
गुलाम बनकर झूठे मालिक के।
सांसदों की कीमत देकर,
सरकार बदलने को।

ऐ धनपशुओ।
धन दो, धन दो, धन दो!
देश रो रहा है राहत दो।
संविधान को कत्ल कर।
मनु की संतानें धन के खौफ क़ा।
बाजार सजाऐ हुए हैं।
वतन को बेच बेच कर।
राष्ट्रीयता की हुंकार लगाए हुए हैं।
क्या तुम वतन बचाओगे।
वतन खरीदने वाले !


ऐ धनपशुओ।
मानवता कराह रही है
तुम्हे देश को परोस दिया है
वो जो जुमले सुना रहा था हमें !
अब वो हमसे ताली और थाली !
और तुमसे घंटी और घंटा बजवा रहा है।
कोरोना का क्या रोना, रोना खुद पे आ रहा है।
मेरा शासक शोषक की तरह !
सब लूट लिया और अब बहका रहा है।
क्या तुम वतन बचाओगे।


-डा लाल रत्नाकर

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