शनिवार, 18 अप्रैल 2020

झूठा राजा



"जिनमें जरा सा भी वजूद बचा हुआ है सच सुनने का और
उनमें राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभाव के साथ संविधान की लोकतांत्रिक
मर्यादा का लेशमात्र शेष है मेरी एक कविता सुनी जा सकती है":- विश्वास नहीं होता एहसास नहीं होता। उम्मीदों के समंदर पर भरोसा नहीं होता। जुमलों के बाजीगर विश्वास नहीं होता। एहसास नहीं होता तेरे राहत के सउरों पर। वादाखिलाफी का एहसास हमें भी है। लंबे अनुभव का कोई आभास नहीं होता। शातिर हो सियासत जब विश्वास नहीं होता। विपदा में तिजारत का अनुभव कितना है। धर्मों की सियासत से विश्वास नहीं होता। उन अंधे भक्तों का हमें एहतराम नहीं हो। डॉ लाल रत्नाकर

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