बुधवार, 17 जून 2020

आह !

जुबान तो खोलिए जनाब क्यों मौन हो गए हैं ।
हम तो भटक रहे हैं और आप कहां खो गये हैं।

अजीब आपकी करतूत और हम अटक गये है।
सच सच कहिए तो हम जुमलों से भटक गए है।

क्या पता हम सब तो आपको समझ नहीं पाए।
खो गए थे भ्रम और भाषण को पकड़ नहीं पाए।

लफ्फाजिया थीं आपकी हम उसमें उबले हुए।
दर दर भटक रहे हैं यूं कमज़ोरियां ही हाथ हैं।

नफरत बोने वाले लोगों को सर चढ़ाया आपने।
हैं जहर पीना हमें हम अब तो जहर के साथ है।

डॉ लाल रत्नाकर

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