शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

वक्त गुजर जाने के बाद।



मेहरबानी करके

आप कभी कभी

देश की भी
बात किया करिए।
देश व्यक्तियों के
स्वभाव और चरित्र से बनता है।
आपके चरित्र पर !
मैं उंगली नहीं उठा रहा हूं ।
लेकिन यह कहने का
साहस जुटा रहा हूं ।
कि आपका चरित्र
जनता के सामने
बेपर्दा हो चुका है।
यह कविता है
और कविता में
आवाज को
दबाना नहीं चाहिए
अन्यथा
कविता झूठी हो जाती है
और झूठी कविता का
कोई महत्व नहीं होता।
मेरे बहुत सारे
मित्रों को यह बात नागवार
गुजर सकती है
लेकिन यही नागवार बात
उनको तब सच लगेगी
जब वह स्वयं गुजर जाने या
गुजरने के करीब होंगे।
डॉ लाल रत्नाकर
(चित्र : डॉ लाल रत्नाकर)

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