मंगलवार, 9 नवंबर 2021

ढोते ढोते भार तुम्हारा !

 


ढोते ढोते भार तुम्हारा !
हार गया है कौन विचारा
पहचानो उसको वही तुम्हारा
तुमको उसने छोड़ दिया है
अपने दुश्मन के चक्कर में
वह मारा मारा घूम रहा है
चंद चाटुकारों के चक्कर में
पता नहीं सिंहासन का या
लालच में था किसी बात का
बना दिया था उसको ठग कर
बेचारा और निकम्मा।
हर घर की यही कहानी
देख रही है जनता सदियों से
डरी हुई है किस बात से।
कोई डर अज्ञात जरूर है
बेईमानी में मशहूर बहुत है
सत्य असत्य से कोसों दूर
ढोता रहा जीवन भर मान
कितना और करोगे अपमान।
डॉ लाल रत्नाकर

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