अंधे आंखें खोल
तेरी आंखों के ऊपर
किसी ने पकी हुई मिट्टी का
ढक्कन लगा दिया है
आंखें तो बंद ही हैं
दिमाग भी कुंद है।
कुछ तो बोल कुछ तो बोल।
तेरे अनमोल बोल
भक्ति भाव में बिजूका बन।
भविष्य के साथ ही
वर्तमान का सत्यानाश
चल रहा है।
तेरी आंखों पर ढक्कन लगा है
और तुम्हें जोगिया वस्त्र पहना दिया गया है।
इस वस्त्र से सब लोग त्रस्त हैं।
अंदर से तुम भी निर्वस्त्र हो।
बांस के कंकाल और हांड से
तुम्हारा सृजन हुआ है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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