चिल्लाइए !
कोई सुनने वाला नहीं है!
क्योंकि चिल्ला चिल्ला कर के
मुल्क की अवाम शांत हो गई है,
हर उस मनहूस घड़ी की,
चिग्गाढ़ दबा दी जाती है।
सत्ता के हथियारों से।
जिनसे उम्मीद बंधती थी,
आज उन्हें भी इस बात पर
उम्मीद नजर नहीं आती।
कि कानून उनके पक्ष में है।
सत्ता जब हथिया लेती है।
हर हथकंडे जो जनता को,
आश्वस्त करते हैं।
दुनिया भर में शोर मचा है
पर वह शोर यहां !
नहीं सुनाई पड़ता!
क्योंकि यहां पर डर का,
मातम पसरा पड़ा है।
भक्त भक्ति में भूल गया है।
कि उसका धर्म क्या है।
उसके धर्म का उद्देश्य क्या है।
वह नहीं जानता।
सत्ता उसे मार रही है।
नफरत और अहंकार का जहर,
उसमें घोल रही है।
सत्ता को ऐसे ही लोगों की जरूरत होती है ,
जो उसके जहर को
जन-जन में घोल सकें।
- डॉ लाल रत्नाकर
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