मंगलवार, 17 मई 2022

मंदिर मस्जिद देख रहा है।

वक्त मिलेगा तब देखेंगे
अभी तमाशा देख रहे हैं
चौबीस घंटे चाल तुम्हारी
हम खंडहर से देख रहे हैं
नेता हो अभिनेता हो, हो
कितने बड़े मदारी तुम।
रक्षक हो या भक्षक हो।
किसके तुम संरक्षक हो
सूखे तरू रूखी धरती।
खेल तुम्हारा देख रही है
भाव तुम्हारा देख रही है
ताव तुम्हारा देख रही है।
वक्त मिलेगा तब देखेंगे।
मंजर महफिल सब देखेंगे,
अभी तो बंजर देख रहे हैं।
सदियों सदियों देखा हमने
जो सपने तुम देख रहे हो
इस धरती की यही कहानी
असली नकली का भेद यहां
हम सदियों से देख रहे हैं।
जो कातिल है वह असली है
यही न्याय हम देख रहे हैं।
जागेगा एक दिन फिर से।
सदियों से सोया मालिक !
जिसको खारिज करके बैठा,
नकली मालिक देख रहे हैं।
धर्म अधर्म के पचड़े को भी
वह सब अंदर से देख रहे हैं।
देश विदेश के बंदरबांट को
अंदर से हम देख रहे हैं।
यहां तक कर्मठ कारीगर भी
मंदिर मस्जिद देख रहा है।
ताजमहल में हाथ कटाकर।
बैठा मंजर देख रहा है।

- डॉ लाल रत्नाकर 

कोई टिप्पणी नहीं: