शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

अजीब दास्तां है


अजीब दास्तां है 
घर घर की ।
जमीर बेचकर
जमीन हड़प रहे हैं।
अपनों की जमीन पर
नजर है उनकी
पराए लोग भी यहां,
यहीं सब देख रहे है।
और देख रहे हैं उनको!
हिकारत की नजर से !
यह कैसा इंसान है
जो दौलत लूटा रहा है
बेईमानी के कामों में
अपनों को मिटाने में
और अपनों को बसाने में,
अजीब दास्तां है!

- डा लाल रत्नाकर 

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