इनको तलाश है जिंदगी की।
उन्होंने वादा करके इनको।
सुना के जुमले भरमा दिए हैं।
भटक रहे हैं तलाश में यह।
अच्छे दिनों की कोई जगह है।
जहां पर उनका मेला लगा हो।
बाजार में बिक रहा हो सपना।
अपना तो घर बार पता नहीं है।
भटक रहे हैं शहर शहर हम।
कहर बहुत है हम पर बड़े-बड़े।
राहत का कोई ठौर नहीं है।
ठोकर ही ठोकर लगे हैं सारे।
तन मन का कोई बंधन नहीं है।
पैरों के छाले मुंह के निवाले।
दोनों सता रहे हैं हमको।
तेरी सूरत गजब की न्यारी।
हर बार हम को भरमा रहा है।
जुमले पे जुमले सुना रहा है।
कहां है सुध हमारी उसको।
अभी तो सौदे बना रहा है।
मुल्क का हो कोई सिपाही।
व्यापार में उसके काम आ रहा है।
गफलत में हम बहुत रह लिए अब।
चल पड़े हैं अपने वतन को।
शायद वहां पर कोई मिले।
यदि बचे होंगे नियति इमान उनके।
आखिर वही सब तो दिखा रहा है।
बेवजह वह सबको डरा रहा है।
उन्होंने वादा करके इनको।
सुना के जुमले भरमा दिए हैं।
भटक रहे हैं तलाश में यह।
अच्छे दिनों की कोई जगह है।
जहां पर उनका मेला लगा हो।
बाजार में बिक रहा हो सपना।
अपना तो घर बार पता नहीं है।
भटक रहे हैं शहर शहर हम।
कहर बहुत है हम पर बड़े-बड़े।
राहत का कोई ठौर नहीं है।
ठोकर ही ठोकर लगे हैं सारे।
तन मन का कोई बंधन नहीं है।
पैरों के छाले मुंह के निवाले।
दोनों सता रहे हैं हमको।
तेरी सूरत गजब की न्यारी।
हर बार हम को भरमा रहा है।
जुमले पे जुमले सुना रहा है।
कहां है सुध हमारी उसको।
अभी तो सौदे बना रहा है।
मुल्क का हो कोई सिपाही।
व्यापार में उसके काम आ रहा है।
गफलत में हम बहुत रह लिए अब।
चल पड़े हैं अपने वतन को।
शायद वहां पर कोई मिले।
यदि बचे होंगे नियति इमान उनके।
आखिर वही सब तो दिखा रहा है।
बेवजह वह सबको डरा रहा है।
डा लाल रत्नाकर
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