नौटंकी की याद बची है,
या चकाचौंध में भूल गए।
शादी ब्याह के मंचों पर,
नौटंकी की अब चाह कहां है
वह तो राह बदल ली हमने
अब इतनी ससुराल कहॉ है
गांव गांव की नौटंकी में
जब घुरहू राजा बनते थे,
अपने ही बेलदार सखा को
अपनी रानी कहते थे।
भारी भरकम आवाजों के
उनके दरबारी रहते थे।
जनता को आकर्षित करते
जब तेज हुंकार वह भरते थे।
होशियार सावधान!
महाराज राजाधिराज
फलॉ पधार रहे है।
जनता उन्नीदी जाग गई।
टुकटुकी लगाए ताक रही।
राजा साहब धीरे-धीरे।
अपना पग वह रखते थे।
चाल ढाल में चलते वह
राजा साहब ही लगते थे।
कोई चुपके से बोल रहा था
राजा तो !
अपना घूरहू लगता है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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