गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

अभी ज्यादा दिन तो नहीं हुए












अभी ज्यादा दिन तो नहीं हुए,
हम भी उसी पाखंड के शिकार थे।
उस पूरे अंधकार में फंसे हुए थे,
आर्य समाज के संपर्क में आने पर!
संस्कार नहीं बदले थे,
सरोकार जरुर बदल गए थे।
नहीं पढ़े थे वेद,ना ही मनुस्मृति।
जब शास्त्री जी ने समझाया था।
आर्य समाज, वेद,मनुस्मृति का विधान।
और पेरियार, ज्योतिबा फुले, बाबा साहब अंबेडकर,
बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा, ललई सिंह यादव
और रामस्वरूप वर्मा का संघर्ष।
हम इनसे मिले थे केवल रामस्वरूप वर्मा से।
तब समझ में आया अंधविश्वास और पाखंड का खेल।
मूर्खों के पूरे समाज में महामूर्खों का आधिपत्य।
जो सब जानते हुए कि 
वह लोगों को कैसे फंसा रहा है।
अपने कमंडल के मायाजाल में।
और हड़प रहा है उन सबका अधिकार।
कर्तव्य बोध के बदले असत्य के हथियार से।
अपने को सर्वोच्च बता रहा है,
औरों को नीचे गिरा रहा है।
यहीं से शुरू होता है उसका सारा षड्यंत्र।
वर्ग का जाति का वर्ण का अद्भुत खेल।
हमने छोड़ना शुरू किया,
एक-एक करके पाखंड के ओढे हुए दंश को।
और उठने बैठने लगा उन लोगों के मध्य।
जो इन सब पर बाकायदा आंख खोलकर अध्ययन किए हैं।
और उसमें देखा है,
उन्होंने हजारों हजारों साल से ठोकी हुई षडयंत्र की कील।
अब हमें फिर से मत फसाईऐ उस पाखंड में।
मत समझाइए भाग्य और अंधविश्वास का आपसी मर्म।
हमने देखा है उस व्यापारी को जो आंखों में धूल झोंकता है।
अपनी आमदनी का एक पैसा नहीं छोड़ता है।
और उन लोगों को ठगता है।
फिर भी मीठी मीठी बातें करता है।
जैसे ही आप इशारा करते हो।
उसके षड्यंत्र पर नजर रखते हो।
शत्रु बनाने का प्रयत्न करता है।
आपके मित्रों के मध्य जहर उगलता है।
हमने देखा है ऐसे बहुरूपिऐ को।
- डा.लाल रत्नाकर



कोई टिप्पणी नहीं: