जो चले गए ,
उनकी स्मृतियां उनकी यादें
सब यहीं छोड़कर चले गए।
प्रतिभा और काबिलियत उनकी
गहरी छापों का हिस्सा हैं।
हम याद करें या भूल जायं।
यह मिल जुलकर अब तय करना है।
जो जग वह सूना छोड़ गए
उसको आलोकित करना है
समरसता के लिए
जीवन भर जो कार्य किया
धर्म निरपेक्ष भारत के
जिस सपने को साकार किया
इस धरती के शहीद लालों को
जन्मभूमि पर अंतिम दर्शन को
जाने का अधिकार दिया
एक किसान से मुख्यमंत्री
तक का सफर बहुत ये कटीला था
पाखंडी और देश तोड़ने वालों से
लोहा लेकर, बड़े फैसले करने वाला
धरती पुत्र कभी न घबराया
दमित और दबे कुचलों को
सदा ही कांधे बिठलाया
राजनीति के दुश्चक्रों ने
उनकी एका को तोड़ा
मरते दम तक,
पाखंडियों के साथ नहीं
नाता जोड़ा.
देश बना अंधभक्तो का अखाड़ा
पर तब भी उन्होंने सबको
अपनी युक्ति से पछाडा.
घर घर और हर हर के नारों
और मन की मनमानी बातों से
टुकड़े टुकड़े में वे बाट रहे थे सबको
तब भी।
नेताजी नहीं निहत्थे थे।
घर-घर में उनके हत्थे थे।
आजम आलम सब बैठे थे।
दुख का खड़ा पहाड़ वहां था।
अर्जुन वहां निढाल पड़ा था।
गांव नहीं वह जन्नत जैसा।
नेताओं का तीर्थ हो गया।
कौन नहीं था जो वहां नहीं हो
देश विदेश में हाहाकार था
मीडिया का बाजार सजा था।
मोदी गोदी सारा मीडिया,
बीबीसी भी बोल पड़ा था।
गांव से निकला योद्धा था वह।
अपने अखाड़े में लौट पड़ा था।
जहां जहां थे पांव पड़े।
सब धरती थी पवित्र हो गई।
अंतिम समय में लौट सैफई।
अपनी मिट्टी में समा गया।
धरतीपुत्र ही वह कहा गया!
जन जन को संदेश दे गये।
पाखंड नहीं करना।
पाखंड नहीं करना।
- डॉ लाल रत्नाकर
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