वह चिंतित थे
और बहुत चिंतित थे
क्योंकि उनके सामने
जो पीढ़ी आ रही थी
और जो पीढ़ी जा रही थी
दोनों के मध्य,
कितना अंतर था!
जाने वाली में शर्म था,
आने वाली का मामला गर्म था।
अज्ञानता का बोलबाला
ज्ञान पर भारी हो रहा था।
यह कहां रुकेगा,
यही उनकी चिंता थी।
इसी के साथ चिंताओं का
समंदर था, पहाड़ था और
सांस्कृतिक उबाल था!
पाखंड का बोलबाला,
अंधविश्वासी पाखंडी
बनने की होड़ में,
कबीर रहीम और रैदास
सभी को कर रहे थे गायब।
गांधीजी तो गायब थे !
बड़े-बड़े पोस्टरों से।
एक कोने में उनका चश्मा
सब कुछ देख रहा था।
गोडसे ब्राह्मण तो था ही,
अब हिंदू हृदय सम्राट हो रहा था।
यह इतिहास का विषय नहीं।
कलाओं का कोई लेश मात्र नहीं।
बहुरूपिया का मचान!
उसके बयां किए हुए बयान!
कानून की जगह ले रहे थे।
वह चिंतित थे।
और उनकी चिंता,
कितनी जायज थी !
और बहुत चिंतित थे
क्योंकि उनके सामने
जो पीढ़ी आ रही थी
और जो पीढ़ी जा रही थी
दोनों के मध्य,
कितना अंतर था!
जाने वाली में शर्म था,
आने वाली का मामला गर्म था।
अज्ञानता का बोलबाला
ज्ञान पर भारी हो रहा था।
यह कहां रुकेगा,
यही उनकी चिंता थी।
इसी के साथ चिंताओं का
समंदर था, पहाड़ था और
सांस्कृतिक उबाल था!
पाखंड का बोलबाला,
अंधविश्वासी पाखंडी
बनने की होड़ में,
कबीर रहीम और रैदास
सभी को कर रहे थे गायब।
गांधीजी तो गायब थे !
बड़े-बड़े पोस्टरों से।
एक कोने में उनका चश्मा
सब कुछ देख रहा था।
गोडसे ब्राह्मण तो था ही,
अब हिंदू हृदय सम्राट हो रहा था।
यह इतिहास का विषय नहीं।
कलाओं का कोई लेश मात्र नहीं।
बहुरूपिया का मचान!
उसके बयां किए हुए बयान!
कानून की जगह ले रहे थे।
वह चिंतित थे।
और उनकी चिंता,
कितनी जायज थी !
- डॉ लाल रत्नाकर
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