रविवार, 13 अगस्त 2023

जिस देश में नफरत रहती है


एक गीत सुनाता हूं
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में नफरत रहती है
अब तक के वैज्ञानिक परिवर्तन पर
फिर से पाखण्ड का सूत्र ही डाला है,
जिस नफरत को आज तलक
बहुत जतन से वह पाला है।
अंधे बहरे गोबर भक्त यहां 
आसक्त हुए जबसे उसके हैं।


सत्य अहिंसा की हत्या कर,
अट्टहास है वह करता।
संतवेश धारण करके जो,
डाका डाल रहा है।
अपनी मनमानी चला रहा है 
मन की स्मृति को वह 
संविधान का विकल्प बना रहा है।
आधुनिकता की बात तो करता है,
चमत्कार का हॉट लगाकर।
एक-एक को चुन-चुनकर,
वह घाट लगा रहा है।

लोकतंत्र को धता बताकर,
जुमलों से जो भरमाता है।
जनता के मौलिक हक को भी,
कानून बनाकर कैसे वह झुठलाता है।
कौन कहां कितना बोलेगा,
यह भी वह ही तय करेगा।
न्याय और न्यायालय भी,
अब सब होगा उसके अधीन।

नए-नऐ कानून बनाकर,
कितना अब हमको ठगेगा।
जब अपराधी ही जस्टिस होगा,
यह किस किसके गले उतरेगा।
कौन करेगा आवाहन अब,
भारत देश बचाने का।
आंदोलन बड़ा चलाने का,
सबको उसने घेर दिया है।
भिन्न-भिन्न अभियानों से,
उनके ठौर ठिकानों से।

-डॉ लाल रत्नाकर

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