सोमवार, 12 अगस्त 2024

लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो



लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो
काम तो वही करती हैं, 
अभिव्यक्ति में भले असुविधा हो 
लेकिन मन से तो जोडती ही हैं 
एहसास को तोलती तो है 
लाइनें पड़ी हों भले ही खड़ी हो।
समय की बात बोलती हैं।
लाइन राजनीति में, 
भ्रष्टाचार में, दलाली में,
कितनी कारगर होती हैं। 
जब वह एक दूसरे की 
मददगार होती है।
लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो
काम तो वही करती हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर

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