जिनकी आंखें हैं
उन्हें कैसे दिखाई नहीं देता
जो बिना आंखों के देख लेते हैं
दोनों में कितना सच होता है
सच देखने के लिए
जरूरी नहीं आंखें हो
सूरदास ने यह साबित किया है
सच तक पहुंचाने के लिए
बहुत सारा त्याग और तपस्या
अज्ञान और अभिमान का
परित्याग करना।
जरूरी है सच के लिए होना
और सच के करीब होना
सच न सोना है ना चांदी
न किसी तरह का रत्न है।
सच-सच है
जो ज्ञान और अज्ञान को
अलग करता है।
मन को शांत और दुश्मन को
अशांत करता है।
उन्हें कैसे दिखाई नहीं देता
जो बिना आंखों के देख लेते हैं
दोनों में कितना सच होता है
सच देखने के लिए
जरूरी नहीं आंखें हो
सूरदास ने यह साबित किया है
सच तक पहुंचाने के लिए
बहुत सारा त्याग और तपस्या
अज्ञान और अभिमान का
परित्याग करना।
जरूरी है सच के लिए होना
और सच के करीब होना
सच न सोना है ना चांदी
न किसी तरह का रत्न है।
सच-सच है
जो ज्ञान और अज्ञान को
अलग करता है।
मन को शांत और दुश्मन को
अशांत करता है।
-डॉ.लाल रत्नाकर
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