मंगलवार, 13 अगस्त 2024

जिनकी आंखें हैं



 जिनकी आंखें हैं 
उन्हें कैसे दिखाई नहीं देता 
जो बिना आंखों के देख लेते हैं 
दोनों में कितना सच होता है 
सच देखने के लिए 
जरूरी नहीं आंखें हो 
सूरदास ने यह साबित किया है
सच तक पहुंचाने के लिए 
बहुत सारा त्याग और तपस्या 
अज्ञान और अभिमान का 
परित्याग करना।
जरूरी है सच के लिए होना 
और सच के करीब होना
सच न सोना है ना चांदी 
न किसी तरह का रत्न है।
सच-सच है 
जो ज्ञान और अज्ञान को
अलग करता है। 
मन को शांत और दुश्मन को 
अशांत करता है।

-डॉ.लाल रत्नाकर

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