ऐसा भी क्या मकसद !
जिसमें ईमान ना हो।
हमने देखा है बेईमानों की
सफेद पोश फौज ?
जो किसी को भी
धोखा दे सकते हैं।
आपने भी देखा है।
बहुत सारे तो हमारे
आसपास भटकते रहते हैं?
और कमेंट भी करते हैं
वह भी जय बोलते हैं
बलिराजा की !
हिंदू मुस्लिम के झगड़ों
को गढ़ते रहते हैं रात दिन
और फिराक में रहते हैं
ठगने के, रहकर नेता के
इर्द-गिर्द।
इनसे तो अच्छे गिद्ध हैं,
जो मांस नोचते रहते हैं,
यह वह है जो,
जिंदा को नहीं छोड़ते हैं।
गढ़ते हैं कानून ?
कानून को बदलकर।
अपने पक्ष में कर करके!
भरते हैं हुंकार।
दो चार !
अपने जैसों को गढ़कर।
ऐसा भी क्या मकसद है!
जिसमें ईमान न हो ।
-डॉ लाल रत्नाकर
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