शनिवार, 28 सितंबर 2024

जिंदगी














जिन्दगी जान ले लेती है दिल की उमंग से
हमारे मजहब सोहबत इज्जत और मोहब्बत

सब बेगाने हो जाते हैं वक्त आने जाने के साथ
हमारे अभिमान के आगे भले सब बौने हो जाते हैं

पर हम लौट नहीं सकते अपने अभिमान से आगे
टूट जाते हैं सियासत के दांव पेंच से जज्बे आखिर

आपकी सख्शियत की आग की लौ जल तो रही है
उन्हें पता है उनकी नियत भी बदली हुयी दिख रही है

और स्वाभिमान के आगे वे असहाय खडे दिखते भी हैं
यही कारण है कि वे जीत तो जाते है पर अंदर से नहीं

जो जल रहे होते तो है पर जलते हुए दिखते नहीं और
वे सामने नहीं आते बल्कि पीछे से ही हमलावर होते है

यहीं हम हार जाते है उस दुष्कर्म और उनके दोहरेपन से
अपराध और छल के कौशल से ही सही वो जीत जाते हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर

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