अकेला चला था
ले के झोला चला था
लोग मिलते रहे
उनको ठगता रहा
झूठ गढ़ता रहा
जुमले मढ़ता रहा
धर्म कहता रहा
अधर्म करता रहा
ज्ञान को अज्ञान से
ढकता रहा !
विश्वगुरु
खुद को कहता रहा !
डिग्री चोरी से वोट चोरी
की साजिश तो करता रहा
इस फकीरी से सारे
डरते रहे मिथ्या काम करते रहे
डॉ लाल रत्नाकर
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