एक अदद आदमी ही बचा था
दुकानों में सजे सामान की जगह!
बड़ी बड़ी दुकानों के सामानों में
अब सुमार है आदमी ।
डरा हुआ आदमी चुपचाप
बोलता हुआ आदमी, अनायास ?
नौकरी करता हुआ वह आदमी भी
जो इमानदार है, कर्मठ आदमी !
जातियों में विभाजित, धार्मिक आदमी?
व्यापारी, अधिकारी, वैज्ञानिक, नेता !
भीड़तंत्र की मंडी का व्यापारी !
बहुत डरावना है यह दौर ?
आदमी की विविधता, विशेषता, सोच
के टैग देखकर कीमत चुकाना !
परम्परागत मूल्यों के गिरते जाना !
सब कुछ हो गया है बाज़ार के हवाले !
जो समझ नहीं आता ?
-डॉ.लाल रत्नाकर

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