चित्र : डॉ. लाल रत्नाकर (डिज़िटल स्केच) |
हम लड़ेंगे तेरे झूठ से ।
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
अपने अन्त के अनन्तकाल तक !
तुम मुझे कमज़ोर समझकर या !
मजलूम समझ कर ठग रहे हो !
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
अपने अन्त के अनन्तकाल तक !
तुम मुझे कमज़ोर समझकर या !
मजलूम समझ कर ठग रहे हो !
हम लड़ेंगे तेरे झूठ से ।
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
फसल के हर दाने की तरह!
तेरे रोग - भोग और तेरे हमले से।
यह धरती तेरी लूट की नहीं है।
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
फसल के हर दाने की तरह!
तेरे रोग - भोग और तेरे हमले से।
यह धरती तेरी लूट की नहीं है।
हम लड़ेंगे तेरे झूठ से ।
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
क्योंकि हमने मेहनत की है इसमें।
आज से नहीं सदियों से!
मेहनतकस किसान की तरह !
तेरी मक्कारी और लफ़्फ़ाज़ी से !
क्योंकि हमने मेहनत की है इसमें।
आज से नहीं सदियों से!
मेहनतकस किसान की तरह !
-डा. लाल रत्नाकर
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