सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

हम तुम्हें सिखाएंगे। आजादी के गीत।

 

बिल तो वापस लेना पड़ेगा।
(विदेशी शासक का आतंक कैसा रहा होगा देसी शासक के आतंक से उसका अंदाजा लगाया जा सकता है निश्चित तौर पर मौजूदा समय में विचारधारा का जिस तरह से अनुपालन हो रहा है वह बहुजन समाज के नेताओं सहित समाज को भी विचार करना चाहिए कि संघ मूलतः राष्ट्र विरोधी मानसिकता का संगठन है तभी तो उसने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया था!)
तुम हमारे खिलाफ!
कितने भी कड़े कानून ला दो।
हम तुम्हारे कानूनों को नहीं मानेंगे।
तुम हमारी बात मानो या ना मानो।
हम तुम्हारी बात मानेंगे।
मगर हम तुम्हारा कानून नहीं मानेंगे।
तुम्हें हमने चुना है।
तुम्हारे जुमले सुना है।
तुम्हारी लफ्फाजिया सुनी है।
तुम्हारे झूठ और नाकारा पन देखे हैं।
हम तुम्हें जानने में जरूर देर किए हैं।
लेकिन अब हम तुम्हें पहचान लिए हैं।
हम ही नहीं पूरा देश कह रहा है।
कराह रहा है अफसोस कर रहा है।
तुम्हारे निकम्मेपन से देश रो रहा है।
फिर भी तुम्हारा सम्मान कर रहा है।
अपने सम्मान को बचाओ।
काले कानून
अपने पूजीपतियों के यहां भेजवाओ।
हमें नहीं चाहिए तुम्हारा यह कानून।
हम अपने हूकुक के लिए।
अब कूच करेंगे दिल्ली को।
तुमने हमें क्या समझ रखा है।
हमने तुम्हें समझ रखा है।
पूजीपतियों का दलाल।
क्योंकि तुमने देश को गिरवी ही नहीं।
बेच दिया है औने पौने में।
देशद्रोही पूजीपतियों के हाथ।
तुम हमारा मजाक उड़ा रहे हो।
अपने काले कानूनों पर इतरा रहे हो।
हम तुम्हें घसीट कर लाएंगे।
अपने खेतों तक।
और तुम्हारे पूजीपतियों को।
पकड़ कर इन्हीं लाठियों से।
उनका स्वागत करेंगे।
और अपनी जमीनों पर उन्हें कुछ दिनों।
हल फावड़े और कुदाल के साथ।
अतिथि बनाकर काम लेंगे।
और उनके निकम्मे पन को।
हम नाप लेंगे उनकी मेहनत से।
सबका साथ सबका विकास।
का तुम्हारा नारा हमारे काम आएगा।
उन दिनों के साथ आराम फरमाएगा।
जब तुम्हारे पूंजीपति हमारे खेतों में।
घास चुन रहे होंगे।
और हम सुन रहे होंगे
तुम्हारे नफरत के गीत।
तुम हमारे खिलाफ
कितने कड़े कानून ला दो।
हमने तुम्हें बनाया है।
हम तुम्हें उतार कर जमीन पर लाएंगे।
ईवीएम की नहीं सुनेंगे।
हाथ उठाएंगे और लाठियां बरसाएंगे।
इन लाठियों से मान जाते हैं।
बहुत बड़े-बड़े सूरमा।
तुम हमारे ही नौजवानों का
डर हमें दिखाते हो।
हमारे न्यायालयों में
अपने बेईमान बैठाते हो।
हम तुम्हें सिखाएंगे।
आजादी के गीत।
आजादी के लिए लड़े हुए
सूरवीरों के संगीत।
कल आएंगे तुम्हारे तहखाने में।
ढूंढने तुम्हारे पुरखों का इतिहास।
तुम तब भी बेईमान थे।
और आज महाबेईमान हो।
कभी नहीं मानेंगे तुम्हारे काले कानून।
(किसान आंदोलन के लिए किसानों का चित्र बनाते समय मेरे मन में जो भाव रहा होगा उसी की संदर्भ को यहां पर लिख रहा हूं यह मेरा चित्र बहुत पुराना है मुझे ऐसा लगा था कि किसान मजबूर नहीं है लेकिन आज जिस तरह से किसान को मजबूर किया गया है उसके पीछे जो शक्तियां काम कर रही हैं जिस सीधे-साधे किसान ने उसके जुमलों पर बगैर गौर किए उसे चुन लिया था उसका असली रूप आज दिखाई दे रहा है तभी तो हमने इन संगठित किसानों के शक्ति का चित्रण यहां पर किया है।)
डॉ लाल रत्नाकर

 
 
 
 

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