सोमवार, 15 मार्च 2021

पागलों की तरह चिल्ला रही होगी।

 

एक वर्ष पूर्व की घटना का पुर्नजिक्र यहां पर कर रहा हूं। होली आने वाली है और एक बार फिर से करोना कि याद दिलाने वाली है जो लोग मन के काले हैं और ऊपर से यह नाटक करने वाले हैं कि वह भीतर से बहुत खुश हैं और होली के रंगों के साथ सबको रंग रंग कर दूसरा रंग चढ़ाने वाले हैं।
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उनका रंग
उनके मन की कालिमां
सराबोर है
अज्ञानता के विकास के युग में
जब विकास जन्म
बेईमानी लेकर निकलता है
घूस और अपराध पर बड़ा होता है,
इस घूसखोर अपराधी को
ढूंढना कितना मुश्किल होता है
जो किसी के जीवन में
अंधकार भर के चला जाता है
अधिकार के नाम पर
अपना व्यापार करता है
और औरों को हक ढक कर
चला जाता है।
कसम गीता की
शपथ ईश्वर की
लेता है और झूठ का
वह भी ऐसे उत्सव मनाता है
खूब रंग लगाता है
अपने जीवन को झूठलाता है
पता लगाइए उसकी पीढ़ियां
जाहिल बन करके
भक्तों के रूप में
विचरण कर रही होगी
और झूठ का बड़बोलापन
और जुमले सुना रही होगी
देश बर्बाद हो रहा है
और होलिका को
आग लगा रही होगी।
आज भी होलीकाएं जल रही है,
समाज और सत्ता
दोनों उन्हें जलाने में
जश्न मनाने में मशगूल है
और विचारों से शून्य है ।
धूर्तत और झूठ को फैलाने में
कितनी मशगूल है।
कैसे निकल पाओगे
ऐसे धूर्तों के मकड़जाल से।
होली फिर आने वाली है।
यही कहानियां दोहराई जाने वाली हैं।
सत्य के पुजारी अपराध और दुराचार में माहिर।
होलिका को जला करके
मानवता को ठेंगा दिखा करके।
भंग और रंग का लेप लगाकर।
पाखंड फैलाकर सदियों से
गुलामों की तरह।
लहा लोट हो रहे होंगे।
अज्ञानता के गुमान में।
दो घूट भांग दो घूट शराब
पीकर।
होली के गीत गा रहे होंगे
जनता ढोल बजा रही होगी
सत्य से मुंह फुला रही होगी।
पागलों की तरह चिल्ला रही होगी।
बुरा न मानो होली है।
होली है भाई होली है।
 
- डॉ लाल रत्नाकर

 

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