मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

जब शहर शहर में एक पार्टी !

 


जब शहर शहर में
एक पार्टी !
अपने कार्यालय बनवा रही थी,
फाइव स्टार होटल जैसा।
क्या उसने एक भी अस्पताल बनवाएं
पूरे देश में शहर शहर तो छोड़िए।
शहरों के जो हॉस्पिटल थे
उनको खस्ताहाल करने के लिए।
उसने ऐसी नीतियां बनाई।
जिससे सरकारी हॉस्पिटल
अपने पूजी पतियों को बेचे जा सके
जैसे रेलवे और हवाई अड्डे
अपने पूजीपतियों को बेच दिए गए हैं।
जनता की गाढ़ी कमाई
उसके द्वारा दिए गए टैक्स
देश की राष्ट्रीय संपदा के निर्माण के लिए
उपयोग में लाए जाते हैं।
जैसे हर परिवार के श्रम से
एक सुंदर घर का निर्माण होता है
वैसे ही देश का निर्माण हरजन से होता है
जब घरों में कोई बेईमान कब्जा करता है
तब रण होता है।
जब देश का शासक निकम्मा होता है।
तो उसके खिलाफ जनआंदोलन होता है।
जन आंदोलन के लिए
जनता की भागीदारी जरूरी होती है
जब राजनीति में यह मजबूरी होती है
कि अपने परिवार को राजनीति में
राजा बनाने की परंपरा चल पड़े।
तब इसी तरह धोखेबाज और झूठे।
राजनीति को अपना हथियार बना लेते हैं
जनता को मक्कार और भक्त बना कर
दीवा स्वप्न दिखाकर जुमले सुनाकर
सत्य से बहुत दूर ले जाते हैं।
और इस तरह से काबिज हो जाते हैं
जैसे यह लोकतंत्र नहीं ?
राजतंत्र है और उनके बाप का राज रहा है।
वक्त है जनता के खड़े होने का।
लोकतंत्र के मूल्यों को आंदोलन में बदलने का।
आइए निकलिए।
नेत्रृत्व तो अपने आप निकल आएगा।
अगर बैठे हो इस उम्मीद में जो कुछ कब्जा किए हो।
वही तुम्हारा लक्ष्य है।
तो फिर तुम्हें मरने से कोई नहीं रोक सकता।
जिस तरह से तुम ने कब्जा किया है
दूसरा आएगा।
तुम्हें लतिआएगा।
और देश पर काबिज हो जाएगा।
तब तुम्हें असली गुलामी समझ में आएगी।
कश्मीर के बहाने तुमने पता नहीं क्या क्या दे दिया दुश्मन देश को।
क्या क्या छुपाओगे।
कब तक उल्लू बनाओगे।
सारा पोल खुल गया।
हाहाकार मचा हुआ है।
आयुष्मान भारत न जाने कहां गया हुआ है।
शब्दों के बाण अब काम नहीं आएंगे।
आपदा में अवसर।
क्रूरता की कला।
करुणा का बहाना।
क्या यही आत्मनिर्भर भारत है।
जहां इंसान मारा मारा फिर रहा है।
पशुओं की तरह मर रहा है।
कोरोना ने बहुत अच्छी तरह पहचाना।
लड़ो इससे।
इससे वैज्ञानिक लड़ सकता है।
इसे विज्ञान समाप्त कर सकता है।
ताली थाली घंटी रामायण और कुंभ!
जमाखोरी कालाबाजारी और दवाओं का अभाव ?
यह तुम्हारी उपलब्धि है।
इससे कब तक मूंह चुराओगे।
भाटो की तरह गीत कब तक गाओगे !
निगल रही है महामारी
बड़ी-बड़ी प्रतिभा हमारी।
मुफ्त के टीके बेच बेच कर
कब तक गाना गाओगे
मन की बात सुनाओगे।
क्या विश्व गुरु इसी तरह कहलाओगे।
बच्चा-बच्चा सुन रहा है
अपने मन में गुन रहा है।
क्या क्या उसे पढ़ओगे।
सचमुच घर बैठओगे।
कितना अपढ बनाओगे।
शूद्र दलित और स्त्री का अपमान।
यही तुम्हारी बाजीगरी है।
अब फिर से तुम इस देश को।
मध्यकाल में ले जाओगे।
मनुस्मृति को संविधान का कबर चढ़ाकर।
कितने स्मसान घाट बनाओगे।
जुमले में जुमले में निकल पड़ा है।
मन के भीतर का सच तेरे।
दाढ़ी पहनकर कैसे तुम रवींद्रनाथ बन जाओगे।
टैगोर अगर बनना है तुमको।
साड़ी पहनो चूड़ी पहनो।
चौराहों पर झाल बजाओ।
तृतीय लिंग के साथी तेरे।
साथ खड़े हो जाएंगे।
ताली खूब बजाएंगे।
आम आदमी को भरमाएंगे।
शान मटक्का मार मार कर।
सबसे माल उड़ाएंगे।
अब तुम उनके मुखिया बनकर।
असली जगह पहुंच जाओ।
विश्व गुरु का खिताब तुम्हें वह।
घर घर ले जाकर दिलवाएंगे।
आओ उतरो अब गद्दी से।
भक्त नहीं चिल्लाएंगे।
अब जनता शोर मचाएगी
धीरे धीरे फाइव स्टार महलों पर।
वह काबीज हो जाएगी।
--
डॉ लाल रत्नाकर

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