गुरुवार, 20 मई 2021

घाटों पर चौकीदार नहीं होते।


घाटों पर चौकीदार नहीं होते।
वहां-वहां डोम होते हैं।
डोम ही घाटों का राजा होता है।
राजा हरिश्चंद्र को जब किसी डोम राजा ने।
घाट की रखवाली दी थी।
वह कहानी इमानदारी की नजीर बन गई।
अपने औलाद के कफन की जगह रानी की चीर बन गई।
क्या गुजरी होगी उस समय हरिश्चंद्र जैसे सत्यवादी पर।
झूठे से पूछो कि उसको यह कहानी पता है।
उनकी ईमानदारी की नजीर बन गई।
तुम्हारी बेईमानी भारत की तकदीर बन गई।
कोई गिनती नहीं है बाबू।
चौकीदार कहने से बात नहीं बनती।
चौकीदारी करने के लिए जमीर की जरूरत होती है।
देश का चौकीदार बनके, मन की बात करने से।
देश नहीं चला करता?
देश चलता है इमानदारी से।
अस्पताल से और लोगों के स्वास्थ्य से।
अस्पताल हैं मगर वहां जगह नहीं है।
सवाल जगह का नहीं है सवाल श्मशान घाट का है।
जब श्मसान घाट बनवा रहे थे।
कहां कहां बनवाए हो कुछ पता है।
आप ही ने तो कहा था मैं नहीं आया हूं।
मुझे तो गंगा मां ने बुलाया है।
गंगा मां को यह सिला जो आपने दिया है।
नदियों के किनारे जो नजारा है।
उसी के लिए जनता ने तुम्हें चुना था।
तुम नया भारत बनाने की।
घोषणा तो करते हो मगर ।
पुराने भारत का क्या करोगे?
हलाल।
झटका।
या जानवरों की तरह
कीड़े मकोड़ों की तरह
छोड़ दोगे आवाम को उसके हाल पर।
घाटों पर चौकीदार नहीं होते।
चौकीदार जब बैठ जाता है दिल्ली की कुर्सी पर।
कितना भी झूठ बोले अब विश्वास नहीं होता।
नकारात्मकता की नियति थी।
अब सकारात्मकता की बात करता है।
घाटों पर चौकीदार नहीं होते।
वहां-वहां डोम होते हैं।
डोम ही घाटों का राजा होता है।
डॉ लाल रत्नाकर

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