प्रतीकों का पाखंड से
अनंत काल से जो नाता है।
जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ता है
यह षड्यंत्र और गहराता जाता है।
धर्म में, राजनीति में, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में।
जिनको जिनको सांस्कृतिक साम्राज्यवाद
समझ में नहीं आता है।
बिना प्रतीकों का अर्थ समझे।
समाज भीड़ की तरह खिंचा जाता है।
अंधविश्वास, चमत्कार और पाखंड।
प्रतीकों से अच्छी तरह परोसा जाता है।
छापा, तिलक, कलावा बहुजन को बहुत भाता है।
नाना प्रकार से लिख और बोलकर कबीर ने।
चिल्ला चिल्ला कर आज भी समझा रहे है।
गोबर भक्तों को यह कहां समझ में आता है।
प्रतीकों का पाखंड से
जो अनंत काल से नाता है।
तभी तो अपना विनाश उन्हें भाता है।
अनंत काल से जो नाता है।
जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ता है
यह षड्यंत्र और गहराता जाता है।
धर्म में, राजनीति में, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में।
जिनको जिनको सांस्कृतिक साम्राज्यवाद
समझ में नहीं आता है।
बिना प्रतीकों का अर्थ समझे।
समाज भीड़ की तरह खिंचा जाता है।
अंधविश्वास, चमत्कार और पाखंड।
प्रतीकों से अच्छी तरह परोसा जाता है।
छापा, तिलक, कलावा बहुजन को बहुत भाता है।
नाना प्रकार से लिख और बोलकर कबीर ने।
चिल्ला चिल्ला कर आज भी समझा रहे है।
गोबर भक्तों को यह कहां समझ में आता है।
प्रतीकों का पाखंड से
जो अनंत काल से नाता है।
तभी तो अपना विनाश उन्हें भाता है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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