मैं अपने दोस्तों के लिए
वोट मांगने निकला,
जहाँ भी गया स्वागत हुआ
सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी
पर निकलते वक्त
ये नहीं कहा कि वोट तो देंगे
ही मगर उनकी बेचैनी
कम नहीं हुयी होगी
वोट के लिए
विश्वास के बदले
हम वह सब बोल गए
जो हमारे खिलाफ
विरोधियों ने रचे थे
षडयंत्र .
वोट भी अब षड्यंत्र करने वालों
को ही देते है लोग.
क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं इनके भी
खिलाफ रच न दें,
वो षड्यंत्र .
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