सोमवार, 24 जून 2013

इन्हें तो काफिरों की सूचियों में डालो !

डॉ.लाल रत्नाकर 
सभी अर्थों में उन्हें हमने आजमाया है
वसूलों और एहसासात के मतलब पर
घिनौना रूप ही उनका समझ आया है
चलो उन्हें एक मौका फिर और देते हैं
वफा के दायरे में बेवफा का नाम रखते हैं
प्रो.राम गोपाल यादव के संग्रह में
(डॉ.लाल रत्नाकर द्वारा अ.भा.कला उत्सव गाजियाबाद  २०१३ के अवसर पर सप्रेम भेंट स्वरुप )


















भले ही दोगले की अहमियत हो आज के युग में
जमाना खोजता है जेहनियत को आज के युग में
न जन्नत न कोई तमगा मुझे चाहिए
खालों में छुपे हुए हैवानों को पहचानो
निगल जायेंगे ये कच्चे तुम्हारे पाक अरमा को
ये काफ़िर है, इनकी खाल ही है इंसा की
इन्हें समझो, नवाजो मत इन्हें ये झूठ के पुतले
ना काबिल हैं ना इनमें दंभ ही है इतना कि
गैरतखोर को ये कह सकें की तू चोर है इतना
ये मसखरे ये भुत के हैं रूप अनदेखे
इन्हें पहचानने की छुट भी करनी होगी उन्हें
जिनने इन्हें डाले हैं खोल के अन्दर !
ये सब तुम्हारे पाक अरमानों को ही पी जायेंगे
इन्हें तो काफिरों की सूचियों में डालो !


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