शुक्रवार, 28 जून 2013

जरूरत

डॉ.लाल रत्नाकर 




जरूरत जब भी होती है, उन्हें हम याद करते हैं .
मुसीबत जब भी होती है, उन्हें हम याद करते है.

मगर वो हैं की हमको भूल जाते हैं करीने से
वफ़ा करने के बदले वो हमें धोखा ही देते है.

यही कारण है वो हमसे हमेशा दूरियां करते करीने से 
मुझे भी याद है हम उनसे दुश्वारियां ही क्यों न करते

अगर सबकुछ अभी तक माकूल होता तो
कोई भी राज करता हमें तकलीफ क्यों होती

कहानी इनकी भी यही है जो हाल उनका था
बदलना उनका या बदल जाना इनका भी जरूरी था

नहीं तो ये ही होता की  हमारी सूझ भी आखिर
कहीं तो गच्चा खा गयी होती या खा रही होती.

चलो एकबार फिर से लौट चलते है वहीँ
जहाँ से दूरियां की थी किन्ही मजबूरियों में .

जरूरत है इसी आशय की मेरे मौजूं ज़माने में
निहायत स्वार्थी लोगों की सोहबत में बने रहना .

तमन्ना अपनी थी आखिर कोई इतिहास रचने की
मगर लगता है मुझको भी कोई तमाशबीन न समझे

इन्ही हालत में उसने मुझे लाकर खड़ा किया
जिसको दी थी जिम्मेदारी मेरी इमदाद करने की .

जरूरत थी उसे मेरी मगर मुझे उसकी नहीं कोई
वो समझ बैठा है मालिक है वो मैं हु उसका नौकर.

इंसानियत के खेल भी हैं आज के दौर की जरूरत
जरूरत है आदमी की मुझे नहीं आदमखोर की भाई .

मगर काबिज हैं वो सत्ता पर जो आदमखोर है भाई
जरूत है मुझे उनकी नहीं जो आदमखोर हैं भाई .

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