रविवार, 4 अगस्त 2013

असर कितना होता है.

उनकी खुशियों में संभव है 
मेरा लिखा खलल डाले.
पर ये खुशियाँ नहीं फरेब के 
फ़साने हैं.
फरेब रचाने वाले ओ चहरे 
सदियों के पहचाने हैं,
नवजवा ये मत भूलो ये 
तुम्हे फ़साने के बहाने है 
इज्जते बेचने वाले 
खरीददार लगते हैं 
इनके करतब ये तो
सदियों पुराने हैं
मुझे एहसाश है की
मेरी बात को हल्का लोगे
पर मुझे एहसाश है ये की
सदियों के ये फ़साने हैं
वक़्त अपना बर्बाद करो
उसके मालिक तुम हो
मगर ये ध्यान रहे
अंगूठा तुम्हारा भले ही
सलामत दीखे .....
करोरो करोर के अरमान
ये कुचलवा डालेंगे
तुम्हे एहसाश भी नहीं होगा
जब शिकवा के लायक भी
नहीं तेरा होगा.
करीब उनके रहने में
खुशबू जरूर आती है
इन खुश्बूवों के लिए
असंख्य गुलाब मिटाए जाते है
तुम्हारा काम है ख्याल करना
बे खयाली में सब बरबादियाँ
नहीं होतीं.
हमारा काम था हमने उसे पूरा किया
अब देखना है उसका असर कितना होता है.
-रत्नाकर

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