शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

युवा

डॉ. लाल रत्नाकर 

अब आन्दोलन की चाह नहीं 
सब समझ गए है नवजवान 

जब हिम्मत हार गयी हो मेरी 
ये पीढ़ी लगा लगा कर सीढी 

खूंखार व्यवस्था बेच चुकी हो 
जीवन के सारे सपने अपने को 

किस हिम्मत से रोके वो आन्दोलन के खतरे को 
अतः जवानों ने समझा है अब अपनी हैरानी को

भाग रहा है दौड़ रहा है देखा देखि
संसाधन के सपनों की दुकानों पे

कहाँ पता है उस होनहार को निति नियति के चक्कर का
उसकी दौलत, मेहनत उसकी, खड़ी कबाड़ के ढेरों पे .

कहते कहते बिदा हो गए हमारे भाग्य विधाता भी
सारा देश ही आधा हो गया ज्ञान और अधिकारों से

भैया भैया रटते रटते नेता जी हो गए वही
जिनके लिए लडे थे हमने ये कैसी बर्बादी है

आबादी के दबाव में बिल्डिंग और मंजिला हो गयी
अब जमीं और जमीन से शिरकत भी तो ख़तम हो गयी

चहरे मोहरे बदल गए है हिम्मत भी कुछ अजब हो गयी
न्याय नहीं अन्याय हमारे हिम्मत की अब जगह हो गयी

करना समझौता ही है अब दौलत इतनी प्रबल हो गयी
आन्दोलन करने की नियत नौबत बनकर खड़ी हो गयी

समाजवाद की नियत जब पूंजी के प्रति प्रबल हो गयी
घर परिवार यही सबजन जन-सुजन से सब बड़े हो गए

आन्दोलन करने की प्रबृत्ति पर अंकुश और प्रतिबन्ध हो गए
मंत्री संतरी बनने के चक्कर में दौलत देह ही प्रमुख हो गए

नहीं चाहिए सीख कोई अब नौकर ही जब प्रमुख हो गए
न्याय प्रतिष्ठा मानदंड सब सबके सब काफूर हो गए




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