सोमवार, 18 नवंबर 2013

हिम्मत और रचना !

डॉ.लाल रत्नाकर 

रचना की हिम्मत, हिम्मत से रचना !
दोनों ही स्थितियों में रचना ही रचना !

एक एक की हिम्मत का ख्याल रखना
रचना की संरचना से वाकिफ होना ही !
वास्तविक रचना की मौलिकता को ही
बचाए रखना अपने आप में हिम्मत है !

दूसरी ओर सारे प्रभाव का पनपना ही
भय उत्पन्न करा देना है कमजोरी ही
उसकी पहली सीढी पर खड़े व्यक्ति को
पहाड़ पर चढ़ा देना हमारे वक़्त की ही
खूबी भी है और भूल भी हिम्मत की !

अचरज और पराक्रम से पनपने का
वसूल वसूल ही है भले कोई उसे न
समझे इसलिए समझ को दोष देना
भी बड़ी भूल है रचनाकार की क्यों
क्योंकि उसे कहाँ पता तुम्हे क्या !
और तुम्हारे स्वभाव का क्या !

पीढ़ियां ख़राब हो जाती हैं बिना वसूल के
जब शर्मायेदार वसूलता है रसूख का सूद !

ऐसे में हाथ माथ और सर सब गिरवी हो जाते हैं
रचनाकार के रसूख व् ईमान  गुम  भी हो जाते हैं !

कैसे बचेगा मेरा वसूल इन स्थितयों में जब
खून और खून ही फैला हो चारो तरफ शहर में।


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