लूट रहे हैं
डॉ लाल रत्नाकर
प्रिय होने के चक्कर में
हम अप्रिय होते जा रहे हैं
हम क्या पहुंचा रहे हैं।
जिनको जो चाहिए वो
क्यों हमसे मांग रहे हैं
पता नहीं क्यों वे ऐसा कर रहे हैं
जिन्हे आज जरूरत है
वे केवल उनकी जरूरत नहीं
पूरी कर रहे हैं या उनका
जो कुछ है बल्कि उसे
मनचाहा लूट रहे हैं
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