शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

लूट रहे हैं

डॉ लाल रत्नाकर 

















प्रिय होने के चक्कर में 
हम अप्रिय होते जा रहे हैं 
हम क्या पहुंचा रहे हैं। 
जिनको जो चाहिए वो 
क्यों हमसे मांग रहे हैं 
पता नहीं क्यों वे ऐसा कर रहे हैं 
जिन्हे आज जरूरत है 
वे केवल उनकी जरूरत नहीं 
पूरी कर रहे हैं या उनका 
जो कुछ है बल्कि उसे 
मनचाहा लूट रहे हैं 

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