रविवार, 13 अप्रैल 2014

महाभ्रष्ट को चुनने की हिम्मत कर लें।

आज ये बात बार बार क्यों मन में आ रही है
संसद, धन कुबेरों, गुंडों और नेता पुत्रों की
शरणगाह क्यों बनती जा रही है !

क्या यही ईमानदार भारत गढ़ेंगे
जिनके दामन हत्याओं, डकैतियों और
बे-इमानियों से भरे हैं या इन्हे "वंशवाद"
में पैतृक सम्पति की हिस्सेदारी के हक़ से
संसद जाना लाजिमी है !

साथियों ! इन्हे भेजने में आपका योगदान कितना है
यह आज मेरे मन में बार बार क्यों आ रहा है
क्या आप जब कहते हो ये बे-ईमान है
आज जिस ईमानदार को आपको चुनने का हक़ है
कल वही कैसे बे-ईमान हो जाता है, क्या संसद की ही
ये परम्परा है जिसमें घपले, घोटाले, लूट की छूट और
सबकुछ हड़पने की परम्परा है !

साथियों ! एकबार मुझे जाने का हक़ दे दो
जिससे उस सत्य से हम रूबरू हो लें और आश्वस्त
आपकी तरह इन्हे चुनने की हिम्मत कर लें।

देश के कई उच्च पदों पर आसीन भारतीय अधिकारी
जनरल, कर्नल, मेजर .......
चीफ सेक्रटरी और पत्रकार  ....
प्रोफेसर डाक्टर इंजिनियर सेवानिवृति के बाद
अतृप्त आत्माएं  …
देश की इस संसद की वोर गिद्ध दृष्टी से दबोचना  …
चाहते हैं या वहां जाकर जो अबतक नहीं कर पाये
क्या उसे पूरा करना चाहते है या वास्तव में
देश की सेवा करना चाहते हैं।

साथियों !  यह कैसा विचित्र संयोग है की
दोनों उसी संसद में होते हैं जो जीवनभर अपराध किये होते हैं
और जो अपराध रोकने के लिए सरकार में काम किये होते हैं
इन्हे उन दलों का संरक्षण मिला होता है
जो जातवाद पर कुठाराघात तो करते हैं
पर टिकट (संसद के लिए) अपनी जाती को ही देते है
शायद इन्हे लगता है की इनकी जाती किसी को नज़र नहीं आती
ये मुट्ठीभर हैं पर हर जगह यही छाये हैं (छतरी के नीचे जो हैं)

साथियों आप शायद अच्छी तरह समझ गए होंगे
की बार बार मेरे मन में ये सब क्यों आ रहा है !
इसीलिए तो कह रहा हूँ !
साथियों ! एकबार मुझे भी वहां जाने का हक़ दे दो
जिससे उस सत्य से हम रूबरू हो लें और आश्वस्त
आपकी तरह इन्हे चुनने की हिम्मत कर लें।

महाभ्रष्ट को चुनने की हिम्मत कर लें।
हिम्मत कर लें।

*डॉ. लाल रत्नाकर

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