डॉ लाल रत्नाकर
लोकतंत्र और राजनीती के अन्तर्सम्बन्ध
अवाम के इंतजामात के आवश्यक अनुबंध
राजनीतिज्ञों के छल प्रपंच और दलीय प्रबंध
नीति नियति के प्रबंधकीय अन्तर्सम्बन्ध
अवाम दे देती है अधिकारों का एकल अनुबंध
जैसे दूकानदार सत्यापन कराकर वर्षों ठगता
कम तौलता है और पूरी कीमत लेता रहता है.
ठीक वैसे ही जो आशीर्वाद तो पाने के लिए फेकता रहता है
मगर मिलने या न मिलने पर भीख श्राप कम नहीं करता।
आदमी आदमी की नहीं सुनता सुनता है जातियों की
उसकी जाती जाती की तरह नहीं होती आदमी होती है।
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