शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

भक्तों की दशा

भक्तों की दशा
भारत का भाग्य विधाता भक्तों की फ़ौज़ बनाता
भक्तों के भाव समझना भक्ति में ही है रम जाना
भक्त विचारे भक्तों के मारे भीड़ बने संतों के द्वारे
संतो की व्यथा कथा है अपनी मन से ओ व्यापारी
आज हमारा नैतिक दायित्व मूल्य रहित सोहरत
पर हम जोड़ रहे हैं भाई कंगले की है बड़ी कमाई
राजनीती हो, शुक्रनीति हो कबीरा का चौराहा हो
सभी जगह संतों के भक्तों का भीड़ भरा पौराहा
भक्त बिचारा अज्ञानी नव ग्यानी के अज्ञानों से
गुरु सब जुगत कर रहा किसी तरह गुरु होने का
ऐसे में क्या बदल सकेगा भारत के अज्ञानों को
दान दक्षिणा और चढ़ावा यह एक दिखावा है
भक्तों की भक्ति में अब जो अवसाद भरा है
हमने जो सज्जन देखे थे दुर्जन उनसे दूर खड़ा था
अब दुर्जन के बिना ओ सज्जन भी मज़बूर खड़ा था  
बाबाओं की चमड़ी में जब लम्पट और हैवान खड़ा हो
भक्तों की भक्ति में कैसे अब भाई ईमान बचा हो
शान्ति सुरक्षा डेरों की आश्रम और फकीरों की
करे कमांडो और जहाँ भक्तों की हो फ़ौज़ खड़ी
दुनिया के संसाधन हो संतों के ठौर ठिकानों पे
आखिर ये सब ज्ञान कैसे आया इन भगवानों में
कल तक थे लाइन में अब लगवा रखे हैं लाइन ये
भक्तों की लाइन में जब  दीन हीन औ दुखियारे हैं
सेठ महाजन के द्वारे पर अब संत भी डेरा डारे हैं
सब कुछ बदल गया है पर समझ नहीं भक्तों में है
भेदभाव की इस नगरी में सबके अपने भक्त बटे हैं
धर्म अधर्म का घालमेल है छुआछूत है मेलजोल हैं
'सत्य' असत्य में होड़ लगी कौन कहाँ है कौन बड़ा है
नरक कर रहे रोज विचारे जीवन ही जब और सहारे
नीति अनीति के ऊपर नीचे का जब व्यापार हो रहा
भक्त के अंदर नीवं यही है उसके ऊपर बहुत चढ़ा है
सदियों के आडम्बर का अब सही हुआ है  खुलासा
भक्त है भागा भक्त है भागा अगर नहीं अब जागा


 

कोई टिप्पणी नहीं: