रविवार, 23 नवंबर 2014

आज रात के सपने में

(डॉ लाल रत्नाकर )
आज रात के सपने में
जो कुछ आया इतना भयावह था
सो तो रहा था पर डर भी गया था
भागा भी पर कहां गया कुछ पता नहीं
सपना क्या था यह बताते हुए भी
भय लग रहा है और बिना जाने
पत्नी शान्त नहीं हो रही है।
सपने में पता नहीं भविष्य था
या बीता हुआ दरका हुआ अतीत था
पर जो भी था इतना भयावह था
उससे भयभीत होना स्वाभाविक था
जो भी था छोटे छोटे खण्डों में था
इतने में ही जितना बुरा था
जितना अशुभ था पर मन में
उतना ही अविश्वास था
घटना के घटने के सच का सच
इतना अविश्वनीय आश्चर्य था
अनहोनी का, सत्य और असत्य
के द्वन्द का, मूल्यों के अस्तित्व का
विश्वसनीयता के बदलते मानदण्डों का
चरित्र, चाल, स्वभाव, कर्म और दम्भ का
प्रदर्शन और सम्बन्धों के स्वरूप का
उठा मोबाईल में देखा फ्रेश होकर
अभी भोर होने में देर है।
सोया तो पर वैसी नींद नहीं आयी
जिसमें वो सपने आ रहे थे
प्रातः पत्नि ने कहा यदि आप
इतना रोज सोया करो तो उम्र
बढ. जाऐगी और कोई बिमारी
भी नहीं आएगी।
रात के सपनों के डर से मैंने
उन्हें तो कुछ नहीं कहा
पर मन ही मन सोच रहा था
तुम तो खूब सोती हो
पर बिमारियों का ही हमेशा रोना
रोती हो।
अब वे सपने भूलने लगे हैं
दिन के काम और भागदौड़
याद आ रही है।

(चित्र ; डॉ लाल रत्नाकर )

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