गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

किसान की मौत !
किसान होना गुनाह हो गया है
कभी किसान भगवान का रूप होता था
किसान जब तक अन्नदाता था
तब तक हम उसे पूजते थे
अब वह उनकी पूजा करता है
जो उसे रोज़ मार रहा है
अभी ताज़ा ताज़ा कानून
लेकर आ रहा है किसान को
फिर से मारने के लिए !
- डॉ लाल रत्नाकर



आत्म ह्त्या !
देश और स्वदेश के बीच  गाँव कहीं खो गया है
मुगलों और अंग्रेजों की तरह इसकी नज़र भी
सदियों से मेरे जैसे किसानों की जमीन पर है
जमींन चली गयी तो मेरे प्राण चले जाएंगे
मुझे इसकी सेवा के सिवा और कुछ नहीं आता
यही कारण है की मैं आत्म ह्त्या कर रहा हूँ !
- डॉ लाल रत्नाकर


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