प्रक्रिया तबाही की प्रक्रीति के हिस्से में नहीं है
हमारे लोभ लाभ का हिसाब कैसे और कहाँ है
सब्र का बोझ उठाने की कला पहले से ही तो है
मगर आज आचार और व्यवहार संकोच भरा है
न सम्मान की सीमा है न अपमान की फ़ितरत
शहरी तो है वे मगर पशुवत व्यवहार है जिनका
धरती में भरपूर भरण है अन्नादि की वह भरणी
विक्रित किया है उसके इस रूप का हम सबने ।
आओ सँवारे रूप को पलकों के उनके शूल को
देह के प्रतिघात को आपात के हर संताप को ।
सबने ही उसके हिम्मत व इस्मत को लाचार किया है
कहना यही सही है कि अत्याचार व व्यभिचार किया है
उसी संकोच ने भीतर से अब जो विस्फोट किया है
उसी प्रतिकार को हम सबने मिलकर तबाही कहा है।
हमारे लोभ लाभ का हिसाब कैसे और कहाँ है
सब्र का बोझ उठाने की कला पहले से ही तो है
मगर आज आचार और व्यवहार संकोच भरा है
न सम्मान की सीमा है न अपमान की फ़ितरत
शहरी तो है वे मगर पशुवत व्यवहार है जिनका
धरती में भरपूर भरण है अन्नादि की वह भरणी
विक्रित किया है उसके इस रूप का हम सबने ।
आओ सँवारे रूप को पलकों के उनके शूल को
देह के प्रतिघात को आपात के हर संताप को ।
सबने ही उसके हिम्मत व इस्मत को लाचार किया है
कहना यही सही है कि अत्याचार व व्यभिचार किया है
उसी संकोच ने भीतर से अब जो विस्फोट किया है
उसी प्रतिकार को हम सबने मिलकर तबाही कहा है।
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