एक शहर को ख़ूबसूरत बनाने का केवल और केवल वह तंत्र
सायास प्रयास के शिवा जिसका नाम है सेठ या मात्र दौलत !
रमना पड़ता है लोगों के साथ उसमें अन्तर्निहित विचारों से
टैक्स, टोल, घूस और मोल भर नहीं सकते कलात्मक भाव
जहाँ सुविधा भोगी अफ़सरशाही के दोहरे होते जेहन और मन
मनोभाव और काग़ज़ के कारनामों तथा लफ़्फ़ाज़ी ख़बर की
फिर भी हमें मान अपमान के उसी दंश का भागीदार बनकर
ही बनना होगा जैसे ताज के शिल्पी के अंगभंग का है पर्याय
अत: उचित यही होगा हम दुबक कर किसी कोने में चुपचाप
इंतज़ार करें खो जाने तक ख़्वाब अपने मन के अंदर पल रहे
इस एक शहर के सुन्दर और कलात्मक विन्यास के पल के !
अन्यथा टूटे हुए मन से उस कारोबारी के धन से विश्वास और
ज़मीर ही कमज़ोर होंगे हज़ारों उर्वरा मन जो मन में पाल लेंगे
अविश्वास, उपहास, चालाक परन्तु नियति के निर्धन उस जैसे
और धनवान की परीक्षा विश्वास और वैभव के उपहास का दंश
संजोये साहस से हमने जिस विश्वास को बड़ा किया था वह !
उसे ही वह अपने कौशल से चूर चूर कर ऐसे ही फैला दिया है ।
टूट जायेगा काले और कुटिलमना ब्राह्मणी प्रव्रित्ति के आगे
और आगे जाने के अवरुद्ध पड़े सदियों के मार्ग कैसे गढ़ेंगे !
क्योंकि अब तक नाम पट्ट पर उनके नाम टंकित होते रहे हैं
जिनका उन कृतियों या रचना प्रक्रिया से कोई ताल्लुक नहीं था !
यह यक्ष प्रश्न निरंतर कचोट रहा है मन में !
सायास प्रयास के शिवा जिसका नाम है सेठ या मात्र दौलत !
रमना पड़ता है लोगों के साथ उसमें अन्तर्निहित विचारों से
टैक्स, टोल, घूस और मोल भर नहीं सकते कलात्मक भाव
जहाँ सुविधा भोगी अफ़सरशाही के दोहरे होते जेहन और मन
मनोभाव और काग़ज़ के कारनामों तथा लफ़्फ़ाज़ी ख़बर की
फिर भी हमें मान अपमान के उसी दंश का भागीदार बनकर
ही बनना होगा जैसे ताज के शिल्पी के अंगभंग का है पर्याय
अत: उचित यही होगा हम दुबक कर किसी कोने में चुपचाप
इंतज़ार करें खो जाने तक ख़्वाब अपने मन के अंदर पल रहे
इस एक शहर के सुन्दर और कलात्मक विन्यास के पल के !
अन्यथा टूटे हुए मन से उस कारोबारी के धन से विश्वास और
ज़मीर ही कमज़ोर होंगे हज़ारों उर्वरा मन जो मन में पाल लेंगे
अविश्वास, उपहास, चालाक परन्तु नियति के निर्धन उस जैसे
और धनवान की परीक्षा विश्वास और वैभव के उपहास का दंश
संजोये साहस से हमने जिस विश्वास को बड़ा किया था वह !
उसे ही वह अपने कौशल से चूर चूर कर ऐसे ही फैला दिया है ।
टूट जायेगा काले और कुटिलमना ब्राह्मणी प्रव्रित्ति के आगे
और आगे जाने के अवरुद्ध पड़े सदियों के मार्ग कैसे गढ़ेंगे !
क्योंकि अब तक नाम पट्ट पर उनके नाम टंकित होते रहे हैं
जिनका उन कृतियों या रचना प्रक्रिया से कोई ताल्लुक नहीं था !
यह यक्ष प्रश्न निरंतर कचोट रहा है मन में !
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