रविवार, 19 अप्रैल 2015

इरादा..........

जहन्नुम जहाँ में कहीं तो होगा वे शायद आजकल वहीं गए है
नसीहतों के पिटारे लेकर इरादतन या नाराज़गी से चले गये है

मुसीबतों का दौर अपना सपने दिखाते रहते थे जो वो सुना है
किसी के चलते कहा सुनी से लगता तो है कुछ बदल गये हैं ।

नियति हमारी अभी वही है अमान्य में उनका मिज़ाज जो है
पता उन्हे है मेरे रूप रंग का न जाने कैसे मन बदल गया है ।

कई कोशिशों को भले रोक लेता अकारण मुझे जब वो झोंकता है
नशे में नहीं वो नशा उसमें है जो बख़ूबी पता है ज़हर रोपता है ।

मिजाजों में खूंखार होती है सत्ता जब बिचारों से लाचार होती है
तब अमन के नहीं चमन के सौदागरों की सत्ता में बहार होती है।



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