शुक्रवार, 29 मई 2015

मुझे फ़ख़्र है अपने यार पर............

मुझे फ़ख़्र है अपने यार पर
वो हमें दिया जो मिज़ाज है

हमें और क्या अब चाहिये
जब वो ही हमारे पास है ।

उसकी वफ़ा भले हो ख़फ़ा
अब रहम का क्या हिसाब है

उसे लूट लिये वो अनाम जो
सिफ़ारिशों के ही क़यास से

मेरा भी मन पसीज कर कर दिया
विनाश तो वफ़ा का क्या हिसाब है

वो बेवफ़ा या बावफा हो ही भले
मेरा भला, भला किसकी बला ।

उसको मेरा ख़याल है यह पा लिया
और क्या चाहिये सब जगह बेहाल है।

मुझे फ़ख़्र है अपने यार पर
वो हमें दिया जो मिज़ाज है

हमें और क्या अब चाहिये
जब वो ही हमारे पास है ।

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