दुसाध साहब! मुझे यह लिखते हुये अच्छा नहीं लग रहा है, और कहते हुये अच्छा नहीं लग है कि ;
आप क्यों लिख रहे हैं ।
किसके लिये लिख रहे हैं।
कौन पढ़ रहा है।
मैं यही सवाल अपने से करता हूँ
कौन देख रहा है।
क्यों बना रहे हैं किसको सिखा रहे हैं।
कौन सीख रहा है।
धूर्तता सीख रहे है
सुविधा देख रहे है
धूर्त धूर्त होता है किसी का भी हो।
हमने हज़ारों को देखा
कोई संघर्ष नहीं करता ?
तभी वो दलित है, पिछड़ा है
जब वो संघर्ष करता है
तब लगता है कि वह असंतुष्ट है?
मुसलमान लड़ता है ।
पाकिस्तान से भारत में रहकर ।
फिर भी उसपर भरोसा किसको है।
कॉंग्रेस,कम्युनिस्ट, समाजवादी, बसपाईयों को
नहीं उसका विश्वास सबसे हटता जा रहा है
भाजपा का भरोसा उसे विश्वसनीय लग रहा है।
क्योंकि दोनों को अलग अलग तरह से इस देश से प्यार है
स्पष्ट करने से दंगा होने अथवा असंवैधानिक होने के ख़तरे हैं
फिर आप लिख किसके लिये रहे हो ?
डा लाल रत्नाकर
आप क्यों लिख रहे हैं ।
किसके लिये लिख रहे हैं।
कौन पढ़ रहा है।
मैं यही सवाल अपने से करता हूँ
कौन देख रहा है।
क्यों बना रहे हैं किसको सिखा रहे हैं।
कौन सीख रहा है।
धूर्तता सीख रहे है
सुविधा देख रहे है
धूर्त धूर्त होता है किसी का भी हो।
हमने हज़ारों को देखा
कोई संघर्ष नहीं करता ?
तभी वो दलित है, पिछड़ा है
जब वो संघर्ष करता है
तब लगता है कि वह असंतुष्ट है?
मुसलमान लड़ता है ।
पाकिस्तान से भारत में रहकर ।
फिर भी उसपर भरोसा किसको है।
कॉंग्रेस,कम्युनिस्ट, समाजवादी, बसपाईयों को
नहीं उसका विश्वास सबसे हटता जा रहा है
भाजपा का भरोसा उसे विश्वसनीय लग रहा है।
क्योंकि दोनों को अलग अलग तरह से इस देश से प्यार है
स्पष्ट करने से दंगा होने अथवा असंवैधानिक होने के ख़तरे हैं
फिर आप लिख किसके लिये रहे हो ?
डा लाल रत्नाकर
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