सोमवार, 28 दिसंबर 2015

नया समाजवाद !

@डॉ लाल रत्नाकर 
समाजवादी सपने बुने हुए हजारों साल गुजर गए
समाजवाद कहीं दिखाई नहीं देता लेकिन नेताओं,
नेताओं की बस्तियों में राजतंत्र नजर आने लगा है
संभवतह समाजवादियों ने यही ख्वाब देखा होगा,
तभी तो समाजवाद अधीर और चकनाचूर हो गया है
उधर नजर उठा कर देखना और उस पर बात करना
किसी अपराध से कम नहीं होगा क्योंकि समाजवाद
अब पूंजीबाद में बदल चुका है और उसके अनुयाई
राम भक्त हो गए हैं जिससे वो सत्तानसीन हो गये है
समाजवादी चिंतक अनुआई सब विलीन हो गये है
समाजवादी विचार नही शौकिया आचार हो गया है
समाजवाद कुछ नहीं होता यह दिखाने की चीज है
तभी तो राजतंत्रीय उत्सव हो रहे हैं मेरे गांव में.......
आवाम फटेहाल हेै समाजवाद की छांव में.........
कोई भी समाजवादी समाजवाद की बात कैसे करें
न तो लोहिया रहे न समाजवाद रहा किसी गांव में
जातियों का जमावड़ा समाजवादी विकल्प है.......
राजतंत्र की छांव में विकल्प के अभाव में हमने ......
आशा की प्रत्याशा छोड़ दी जिसने तुम्हारे छांव में
अगर लोहिया होते तो माथा पकड़ कर रोते .........
अमर के प्रभाव से कुसंस्कृति के स्वभाव से ..........
समाजवादी सपने बुने हुए हजारों साल गुजर गए
समाजवाद कहीं दिखाई नहीं देता लेकिन नेताओं,
नेताओं की बस्तियों में राजतंत्र नजर आने लगा है।
समाजवाद के प्रभाव से राज काज के स्वभाव से।

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