मेरे गीत मेरे गान किस काम के
उनके गीत और गान बेजुबान के
यहां तो खार सदाचार का बयान है
वहां तो फतह किया हुआ इमान है
जद्दोजहद की यहां कोई उम्मीद नहीं
किसी मुकाम की जहां कोई तमीज नहीं ?
कितने साज बजा दो कितने राज बता दो
यहां तो बस एक ही राग बजता है
जिसमें उसका समाज सजता है ?
यहां हवा को भी तो नहीं है हवा,
यहां पश्चिम में सूरज उगता है ।
-डॉ लाल रत्नाकर
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