बुधवार, 2 मार्च 2016

'मन की बात'

(डिजिटल ) रेखांकन ; डॉ लाल रत्नाकर 

पिछले दिनों इस कदर 'आतंक' से
गुजरता रहा है यह देश, 
जाति, विद्यार्थी और मीडिया भी, 
आततायियों के कहर से
सत्ता के लोग यह प्रचारित करते रहे,
आतंकवाद भीतर आ गया है 
तब से जब से वे/ये सत्ता में आये हैं!

जनता उम्मीद में अच्छे दिनों के !
महगी दाल, रेल, बिजली, पानी और 
'मन की बात' पर सब्र किये 
इतजार कर थक गयी है, 
बीमार बजट से उम्मीद करना
उसका भुलावा ठगावा जानती है वह ।
आतंक ने उसे डरा तो नहीं पाया,
पर वह भले न डरे पर डर तो लगता ही है।
सत्ता की नियति से, सत्ता की नीतियों से।
जब जब वह जन विरोधी खेल करता है। 
अपनों के लिए बे-मेल करता है 
देश के संसाधनों का खेल करता है 
पर वह देशद्रोही नहीं होता !
जबकि उसपर नज़र रखने वाले 
उसके काले कारनामों के खिलाफ 
आवाज़ उठाने वाले देशद्रोही 
बना दिए जाने के लिए जेलों में 
ठूस दिए जाते हैं !


डा. लाल रत्नाकर

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