मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

लोकतंत्र का चाणक्य


मेरे दोस्त !
कब तक फसे रहोगे 
भारतीय राजनीती के इस खेल में ,
वोट आपका और रेल आपके साँप  की,
संघर्ष आपका शान आपके दुश्मन का,
माल आपका आनंद पाखण्ड का,
आपकी जाती का वोट और उपहार 
आपके दुश्मनो को !

ओ गोलबंद हैं 
उनके साथ जो समाज के दुश्मन हैं 
जाती के बल पर काबिल और काबिज है 
आप तो केवल और केवल जातिवादी हो 
और वो समाजवादी हैं, बसपाई हैं, 
कम्युनिस्ट तो खानदानी हैं ,
भाजपा के घर जमाई हैं 
और कांग्रेस के मा-बाप हैं ?

आप समझ नहीं सकते !
उनकी चाल इस जन्म में, जीत में 
जब हार जाओगे शायद तब यह दंश 
आपको सालता रहेगा की कहीं चूक 
तो नहीं हुई उनकी सेवा में !
क्योंकि आप मान बैठे हो की 
वे लोकतंत्र के चाणक्य हैं ?

जबकी जनता ने 
कितनी बार उनको हराया है 
पर आप उस जनता के नेतृत्व के लायक नहीं हो 
कितनी बार आपने जनता को ठगा है 
क्योंकि जनता का दुश्मन आपका सगा है !
इसलिए नहीं की इस लोकतंत्र में 
आपका अपना विचारों से 
कोई आपका सगा नहीं है !

लगाईये दुश्मनों को गले 
क्योंकि लूट के लिए वक़्त बहुत कम है 
आपने जो यह साम्राज्य गढा है 
वह खँडहर होने के लिए ही खड़ा है 
लोकतंत्र का चाणक्य बहुत ही 
सावधान होकर खड़ा है ?

डॉ. लाल रत्नाकर 


कोई टिप्पणी नहीं: