रविवार, 15 मई 2016

स्वार्थ

"स्वार्थ"

मेरे रहबर तू यक़ीन कर
मैंने उसकी मदद नहीं की
इंसानियत का वह खेल
स्वार्थ के चलते उसने खेला !
उसकी मदद उसकी देवियों ने की थी!
क्योंकि उसका विश्वास ?
इंसानों पे नहीं ?
देवियों और देवताओं पर है,
वही हमें, आपको और बहुतेरों को
उसके लिये लगा देते हैं !
तभी तो वह अपनी चमक
बचा लेती है हर परिस्थितियों में ?
मेरी कामना है वह बची रहे ?
क्योंकि यहॉ बचे रहना
बहुत आसान है
बदलती हुई परिस्थितियों में।
नाटकीय स्थितियों में।
मेरे रहबर हमने
अपना यक़ीन तोड़ा
केवल मानवीय परिस्थितियों में ?

डा.लाल रत्नाकर

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